कई लोग यही तर्क देते हैं कि “सिर्फ़ पदयात्रा से पार्टी कैसे बनेगी?
1. इतिहास गवाह है – पदयात्रा सिर्फ़ चलना नहीं, एक आंदोलन होती है
भारत में पदयात्रा राजनीतिक संस्कृति का हिस्सा रही है। कुछ उदाहरण:
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महात्मा गांधी – दांडी यात्रा (1930)
अंग्रेजों के नमक कानून के खिलाफ़ यह सिर्फ़ “चलना” नहीं था, बल्कि आज़ादी का बड़ा आंदोलन बना। -
चंद्रशेखर – ‘भारत यात्रा’ (1983)
उन्होंने पूरे भारत में 4260 किमी पैदल यात्रा की थी। तब वे सीधे सत्ता में नहीं आए, लेकिन लोगों के बीच पहचान और विचारधारा बनी। -
वाई.एस. राजशेखर रेड्डी (आंध्रप्रदेश)
2003 में उन्होंने करीब 1500 किमी की पदयात्रा की थी। उस यात्रा से जनता से सीधा जुड़ाव बना और 2004 में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली। -
जगनमोहन रेड्डी (आंध्रप्रदेश)
2017-18 में 3648 किमी की पदयात्रा की। उसी से उनकी वाईएसआर कांग्रेस पार्टी मजबूत हुई और 2019 में भारी बहुमत से सत्ता में आई। -
राहुल गांधी – भारत जोड़ो यात्रा (2022)
इसका असर कांग्रेस के वोट बैंक पर पड़ा—कुछ राज्यों में उनकी स्थिति सुधरी।
मतलब—पदयात्रा एक राजनीतिक टूल है, जो सीधे जनता तक पहुँचने और विश्वास बनाने का तरीका है।
2. प्रशांत किशोर की पदयात्रा (2022–2024)
- लगभग 3,500 किमी से ज्यादा पैदल चले।
- बिहार के 8000+ गाँव और कस्बों में पहुँचे।
- लाखों लोगों से सीधा संवाद किया, न पार्टी झंडा, न नेता का प्रोटोकॉल—सिर्फ़ जनता से मिलना।
इससे उन्हें जन समस्याओं की ज़मीनी समझ और जनता का नेटवर्क दोनों मिला।
3. क्या पदयात्रा से पार्टी निकलती है?
- हाँ, निकल सकती है—अगर पदयात्रा सिर्फ़ दिखावा नहीं, बल्कि जनता से ईमानदार कनेक्ट बनाने के लिए हो।
- फर्क यह है कि:
- अगर यात्रा सिर्फ़ प्रचार है → असर सीमित।
- अगर यात्रा जनता की आवाज़ बन जाए → वह आंदोलन और फिर राजनीतिक संगठन में बदल जाती है।
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी भी इसी पदयात्रा से निकली।
4. आलोचना क्यों होती है?
- लोग अभी तक कोई चुनावी सफलता नहीं देखते, इसलिए कहते हैं “पदयात्रा से कुछ नहीं होगा।”
- पर राजनीति में बदलाव धीरे-धीरे आता है। पहले जन-समर्थन, फिर संगठन, और फिर चुनावी जीत।
✅ निष्कर्ष:
पदयात्रा से पार्टी बन सकती है, अगर वह लोगों के मुद्दों को पकड़कर उन्हें संगठित करे।
गांधी, वाईएस राजशेखर रेड्डी, और जगन रेड्डी जैसे उदाहरण इसकी पुष्टि करते हैं।