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बिहार में Prashant Kishor की Strategy वर्तमान में हार की ओर ले जा रही है, भविष्य कैसा होगा जानें

प्रशांत किशोर की रणनीति और बिहार का भविष्य: बदलाव की नई दिशा

लेखक: हृदेश तिवारी
तारीख: 29 अगस्त 2025, 12:30 AM IST

प्रशांत किशोर (PK)—भारतीय राजनीति में कभी चुनावी रणनीति के पर्याय बन चुके इस नाम के सामने आज एक बड़ी चुनौती है। 2014 में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत से लेकर कई राज्यों में सत्ता परिवर्तन तक की कहानी में उनका अहम योगदान रहा। लेकिन जब वे खुद मैदान में उतरे, उनकी पार्टी जन सुराज अब तक प्रभावी विकल्प नहीं बन पाई। आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में उनकी मौजूदा रणनीति हार की ओर ले जाती दिख रही है। फिर भी, उनके अनुभव, शिक्षा और दृढ़ता के दम पर भविष्य में उनके लिए पुनर्जागरण का अवसर मौजूद है। सवाल यही है—क्या PK इस मौके को भुना पाएंगे?


1. वर्तमान रणनीति की विफलता

प्रशांत किशोर ने आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए और संयुक्त राष्ट्र में काम का अनुभव लेकर राजनीति में कदम रखा। बतौर रणनीतिकार, उन्होंने कई नेताओं को सत्ता तक पहुँचाया। लेकिन अपनी पार्टी जन सुराज के लिए बनाई गई सेकुलर और समावेशी लाइन—जिसमें हिंदू-मुस्लिम एकता और मोदी-योगी आलोचना शामिल है—बिहार की 82–85% हिंदू बहुल समाज में पैठ नहीं बना पा रही।

India Today Poll (अगस्त 2025) के मुताबिक, उनकी वोट हिस्सेदारी 3% से भी कम रहने का अनुमान है। यह न सिर्फ उनकी रणनीति की कमजोरी को दिखाता है, बल्कि उनकी छवि पर भी चोट करता है। अगर यह नतीजा सच हुआ तो युवा और समर्थक दोनों ही उनकी कड़ी आलोचना कर सकते हैं।


2. हिंदूवादी छवि: नयी शुरुआत की संभावनाएँ

भारत और खासकर बिहार में हिंदू समाज की राजनीतिक जागरूकता पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ी है। बीजेपी और आरएसएस ने इसे आधार बनाकर चुनावी सफलता हासिल की—2014 में 282 और 2019 में 303 सीटें।

किशोर अगर यह स्वीकार करें कि हिंदू पहचान और विकास साथ-साथ चल सकते हैं, तो वे यूपी की तरह बिहार में भी विकल्प बन सकते हैं। योगी आदित्यनाथ ने यूपी में 8.1% ग्रोथ दर (Niti Aayog, 2023) के जरिए यह साबित किया है कि धार्मिक पहचान और विकास विरोधी नहीं बल्कि पूरक हो सकते हैं।

मिथिला की धार्मिक विरासत, गंगा-घाटों की संस्कृति और त्योहारों को आगे रखकर किशोर बीजेपी के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं—बशर्ते यह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण न होकर सांस्कृतिक जागरूकता के रूप में पेश किया जाए।


3. युवा पलायन और परिवार-आधारित रोजगार

बिहार से 60 लाख से अधिक युवा बाहर जा चुके हैं (Migration Report, IOM, 2025)। बेरोजगारी दर 8.5% (Niti Aayog, 2023) और उद्योगों की कमी इस पलायन का कारण है। अगर PK सच में बदलाव लाना चाहते हैं तो उन्हें क्रांतिकारी समाधान की ओर बढ़ना होगा।

  • कम पूंजी आधारित प्रशिक्षण (₹5,000–₹50,000)
  • परिवार स्तर पर रोजगार मॉडल
  • परंपरा और आधुनिकता का संगम

मधुबनी पेंटिंग, मधुमक्खी पालन, हथकरघा, मसाला प्रोसेसिंग जैसे क्षेत्र ग्रामीण परिवारों के लिए उपयुक्त हैं। इन्हें हिंदू सांस्कृतिक पहचान से जोड़ा जा सकता है—जैसे मधुबनी आर्ट को वैश्विक बाजार तक ले जाना

निजी निवेशक, एनजीओ और माइक्रोफाइनेंस संस्थाओं की मदद से प्रशिक्षण + मार्केटिंग (ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) का मॉडल शुरू किया जाए तो यह युवाओं को आत्मनिर्भर बनाएगा। Youth Pulse Survey (2025) बताता है कि 45% युवा सरकारी नौकरी नहीं बल्कि स्वावलंबन को प्राथमिकता दे रहे हैं। यह PK को युवा-नेता के रूप में स्थापित कर सकता है।


4. भविष्य की राह

2025 चुनाव में समय बहुत कम है। लेकिन 2030 तक PK एक नई राह बना सकते हैं—मिथिलांचल और भोजपुर से शुरुआत कर हिंदूवादी छवि + परिवार आधारित रोजगार का मॉडल पेश किया जा सकता है।

यह रणनीति दो काम करेगी—

  1. युवाओं का पलायन रोकेगी
  2. जनता में उनकी विश्वसनीयता बढ़ाएगी

अगर PK इसे गंभीरता से अपनाते हैं तो उनकी पार्टी एक लंबी दौड़ की खिलाड़ी बन सकती है।


निष्कर्ष

आज PK की रणनीति विफल नजर आती है। लेकिन उनकी शिक्षा, अनुभव और जमीनी मेहनत उन्हें राजनीति से बाहर नहीं कर सकती। अगर वे हिंदू सांस्कृतिक पहचान को अपनाकर कम पूंजी-आधारित रोजगार प्रशिक्षण का आंदोलन खड़ा करें, तो वे न सिर्फ युवाओं के लिए प्रेरणा बन सकते हैं बल्कि बिहार की राजनीति में एक वैकल्पिक धुरी भी बन सकते हैं।

2025 में यह बदलाव कठिन है, लेकिन भविष्य की राजनीति इन्हीं फैसलों पर टिकी होगी।


अंतिम प्रश्न: क्या प्रशांत किशोर इस अवसर को साध पाएंगे, या इतिहास उन्हें एक और अधूरी कोशिश के रूप में याद करेगा? यही फैसला बिहार की राजनीति और उनके भविष्य का निर्धारण करेगा।



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