कैमोर पर्वत से निकली बीहर सलिला के तट पर स्थित रीवा के पंचमटा का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी का। जैसा कि नाम से ही स्वष्ट है यह पांचवां मठ आचार्य शंकर के धर्म दिग्विजय अभियान का प्रवास स्थल रहा है। राष्ट्र की धार्मिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ने की दृष्टि से आचार्य शंकर ने चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की। उनकी परिकल्पना मध्यभारत में पांचवें मठ की स्थापना थी। वे ओंकारेश्वर में केदारनाथ की यात्रा पथ पर रीवा (तव रेवापत्तनम) में चीहर नदी के तट पर इसी स्थल पर पांच दिन का प्रवास किया। यहीं से चलकर केदारनाथ पहुंचे जहां उनका महाप्रयाण हुआ। 1987 में कांची कामकोटि पीठ (इसकी भी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी व यहां के प्रथम पीठाधीश्वर रहे) के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी ने पंचमटा में प्रबास किया। जयेंद्र सरस्वती जी उसी पथावर निकले थी जो आदिगुरु शंकराचार्य का था। इसके पूर्व आदिगुरु आचार्य शंकर का अनुसरण करते हुए गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निरंजन तीर्थ का पंचमा प्रवास हो चुका था। पंचमटा सदियों तक उज्जयिनी प्रयाग-काशी की तीर्थ यात्रा पथ का विश्राम केन्द्र रहा। सिंहस्थ और कुंभ के अवसर पर साधु-संतों के अखाड़ों का यहां जमाव होता रहा। कालातर में स्वामी ऋणि कुमार ने पंचमटा की ऐतिहासिकता की स्थापित करने के उद्देश्य से इस स्थल की नया रूप दिया। मध्यप्रदेश सरकार के आयोजकत्व में 19 दिसंबर 2017 को पंचमटा से ओंकारेश्वर के लिए आदिगुरु शंकराचार्य की स्मृति में एकात्म यात्रा प्रस्थित हुई। यह स्थल विंध्य का महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र है। यहां आकर आप आचार्य शंकर के आध्यात्मिक एकात्म के उद्धीष की अत्तगंज को आपने हृदय से स्थदिव होते आभास कर सकते हैं।
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