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आखिर मृत्यु के कितने दिन बाद पुनर्जन्म होता है? जानकर चौक जाएंगे - Garud Puran

Garud Puran : आखिर मृत्यु के कितने दिन बाद पुनर्जन्म होता है? जानकर चौक जाएंगे.

Garud Puran : आत्मा अजर अमर है, वो ना मरती है और ना ही जन्म लेती है। आपने ये वाक्य सुने होंगे वेद पुराणों में भी इसका उल्लेख है कि आत्मा अमर होती है। गरुण पुराण (Garun Puran) के अनुसार हिन्दू धर्म में 16 संस्कार माने गए हैं, जिनमें मृत्यु के बाद किया गया संस्कार अंतिम संस्कार माना जाता है।

हिन्दू रीति पद्धति के अनुसार किसी भी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसे जलाया जाता है लेकिन साथ ही ये भी माना जाता है कि आत्मा ना मरती है और ना ही जन्म लेती है, बस वो एक शरीर से दूसरे शरीर में यात्रा पर निकल जाती है। गरुण पुराण के अनुसार हम आपको बताएंगे कि आत्मा कैसे और कहाँ सफर करती है। 

क्या कहता है गरुण पुराण?

गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु के बाद आत्मा को बहुत लंबा सफर तय करना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि एक आत्मा को 84 योजन की यात्रा पूरी करनी पड़ती है, तब जाकर वो यमलोक यानि यमराज के सामने पहुँचती है। 

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यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन काल में अच्छे कर्म किये हों, कभी किसी को कष्ट ना पहुंचाया हो, तो वो यमलोक जल्दी पहुँचता है और जिसने अच्छे कर्म नहीं किये हों, दूसरों को कष्ट और तकलीफ दीं हों, वो बहुत कठनाई से यमलोक तक जाता है और उसे यतनाएं भी दी जाती हैं। 

क्या पुनर्जन्म संभव होता है?

गरुण पुराण के अनुसार, व्यक्ति अपने जीवन में जैसे कर्म करता है, उसे उन्हीं कर्मों के आधार पर अगला जन्म मिलता है। गरुण पुराण के अनुसार यदि व्यक्ति के कर्म अच्छे हैं तो, वो मोक्ष को प्राप्त होता है हालांकि इसे मोक्ष के लिए कठिन तप और धर्म करना जरूरी है। 

और जब तक मनुष्य को मोक्ष नहीं मिलता वो तब तक धरती पर वापस आता है और इसी क्रम में ये चक्र चलता रहता है लेकिन ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद जब सारी यातनाएं कर्मों के अनुसार मिल जाती हैं, उसके बाद ही मनुष्य का पुनर्जन्म होता है। वहीं, ये भी माना गया है कि पुनर्जन्म मृत्यु के तीसरे दिन से 40वें दिन में होता है। 

पिंडदान और मृत्यु का संबंध 

पिंडदान मृत व्यक्ति के परिजनों द्वारा किया जाता है और इसको करने का महत्व यही होता है कि जब व्यक्ति अपमे कर्मों का फल भोगने के लिए यमलोक में यतनाएं सह रहा होता है, तो यमलोक में उसे भूखा रखा जाता है, जिससे वो इन पिंडों के माध्यम से अपना पेट भर सके और उसकी यात्रा का कष्ट कम हो। 

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