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रीवा से 30 से 40 किमी दूरी पर स्थित तीर्थ धाम बसामन मामा की कहानी - Rewa Samachar

रीवा-सेमरिया रोड पर रीवा से 30 से 40 किमी दूरी पर स्थित तीर्थ धाम बसामन मामा टमस नदी सतधार घाट के तट पर स्थित है, यह एक सिद्ध धाम है, जहां हजारों लाखों श्रद्धालु बसामन मामा के दर्शन के लिए आते हैं।


बसामन मामा एक ब्राम्हण थें, जिनका थाना सेमरिया के अंतर्गत ग्राम कुंभरा बसामन मामा का जन्म स्थान बताया जाता है। उनके परिवार में कुल 3 सदस्य थे वह स्वयं जो भगवान की भक्ति में लीन एक पीपल के पेड़ के नीचे तपस्या किया करते थे उनकी मां एवं एक बहन। ब्रम्हदेव वासुदेव (पीपल) के भक्त कहे जाते हैं इस कारण वह एक पीपल के पेड़ के नीचे भगवान की पूजा अर्चना एवं तपस्या किया करते थे। बताया जाता है कि समीप में आज भी एक ध्वस्त गढ़ी है, वहां के राजा ने कुछ हाथी पाल रखे थे एवं उन हाथियों को भोजन कराने के लिए उन्हें उस बालक जिन्हे बाद में बसामन मामा के नाम से संबोधित किया जाने लगा, के गांव कुंभरा में भेजा गया जहां पर वह पीपल का पेड़ था उस पीपल के पेड़ को जब राजा के सिपाही काटने जा रहे थे तब बालक ने उन्हें यह करने से मना कर दिया उस बालक का ब्रह्म चमत्कार इतना तीव्र था कि 3 दर्जन से अधिक सैनिक उनसे डरकर वहां से भाग निकले। जब यह बात राजा को पता चली तो राजा ने सोचा की एक ब्राम्हण बालक वह भी इतना शक्तिशाली कैसे हो सकता है और उसकी इतनी हिम्मत कैसे की एक राजा को उसने चुनौती दी। इस पर राजा ने जिद्द ठान ली की वह स्वयं वह पीपल का पेड़ काटेगा। उसी समय बालक का विवाह होना सुनिश्चित किया गया था, जैसे ही उनकी बारात प्रस्थान करने की खबर राजा को मिली वैसे ही राजा ने मौका पाकर अपने सैनिकों के साथ मिलकर उस पीपल के पेड़ को काट कर उसे पूरी तरह से खंडित कर दिया गया। पेंड़ के कटने का आभास बालक को हो गया, वह चिंतित होकर विवाह को बीच में ही छोड़कर उक्त पेड़ के पास जाना चाहा किंतु पूर्वजों ने उन्हें जाने से मना कर दिया। बालक विदाई के तुरंत बाद बिना समय गवाए उस स्थान पर पहुंचा। पीपल के वृक्ष की यह हालत देखकर बालक गुस्से से लाल गया, उसकी क्रोध की ज्वाला वह स्वयं सहन नहीं कर पाया। वह बिना सोचे समझे गढ़ी की ओर जाने लगा, पूरे गांव ने उसे जाने से मना किया फिर भी वह गुस्से एवं बदले की ज्वाला में जलते हुए वहां से निकल गया। तभी गढ़ी के कुछ पूर्व एक व्यक्ति उन्हे मिला जो भांट जाति का था, उसने बालक से पूंछा कि वह इतने गुस्से में किस ओर जा रहा है, बालक ने पूरी सच्चाई व्यक्ति को बताई एवं कहा कि वह राजा से कारण पूंछने जा रहा है। व्यक्ति ने कहा कि राजा निर्दयी है, वह कोई बात नही सुनेगा, तुम घर वापस लौट जाओ। गुस्से में आग बबूला बालक ने अपने कटार से अपना पेट काट लिया, जिससे उसकी आंत बाहर निकल आई। व्यक्ति ने सोचा कि इस बालक की मुलाकात अगर मुझसे नही हुई होती तो यह जीवित होता, इस पर ब्रम्ह हत्या का आरोप मुझपे लगेगा एवं मैं ही दोषी माना जाउंगा, इस बोझ तले मैं रह नही पाउंगा, तो उसने भी बालक की कटार से अपने गर्दन पर वार कर दिया। बालक ने उसकी गर्दन को सीधे कर उसे साफे से बांध दिया, एवं अपनी आंत को अंदर कर उसे भी कपड़े से बांध दिया। उसके बाद दोनो मिलकर गढ़ी की ओर चल पड़े। जब राजा को सूचना मिली तो उसने सारे द्वार बंद करवा दिए। दोनो को एक अंदर जाने के लिए सीढ़ी दिखी एवं दोनो चढ़ने लगे। तभी बालक का कपड़ा खुल गया एवं रक्त प्रवाह तेज होने लगा जिससे उसकी मृत्यु हो गई। उसके बाद ही उस व्यक्ति की भी वहीं मृत्यु हो गई। राजा ने आदेश दिया कि इन दोनो को जला दिया जाय एवं दोनो के मृत्यु स्थान पर रक्त के ऊपर मिट्टी डाल दी जाय। तब सैनिकों ने ऐसा ही किया। जैसे ही बालक को जलाने लगे, दूल्हे के भेष भूषा में ब्रम्हदेव खड़े हो गए, एवं सैनिकों से कहा कि जिसका पीपल उसने काटा है, वह बालक उसे बुला रहा है। राजा शराब के नशे में चूर बालक के मौत का जश्न मना रहा था, उसने सैनिकों की बात को अनसुना कर दिया। जैसे ही राजा भोजन करने लगा उसका भोजन राख बन गया। उसकी गढ़ी ध्वस्त होती गई। वहां के सभी जीव जन्तु की मृत्यु हो गई। तभी राजा की पत्नी एवं राजा का पुत्र जो उस गढ़ी से बाहर थें वहां पहुंचे एवं ब्रम्हदेव को पहचान लिया। राजा के पुत्र ने ब्रम्हदेव को मामा कहके पुकारा, जिससे उनका गुस्सा शांत हुए एवं उन्होने रानी एवं उसके बच्चे को गंगा स्नान कर गंगा पार रहने का आदेश दिया। तभी से उन्हे बसामन मामा के नाम से संबोधित किया जाने लगा। इसके बाद ब्रम्हदेव अपने गांव वालों के स्वप्न में आने लगे, उन्होने सभी से कहा कि वे अब मां शारदा की सेवा के लिए जा रहे हैं, जहां पर उनका रक्त था, वहां पर एक सूखी लकड़ी रख दो, 12 वर्षों बाद अगर यह लकड़ी हरी हो जाए तो समझ लेना कि मुझे भगवान ने ब्रम्ह बनाकर भेजा है एवं गांव में ही माता के मंदिर के सामने जहां पीपल स्थित था वहां मेरी स्मृति करना। 12 वर्षों बाद लकड़ी हरी हो गई एवं ब्रम्हदेव की पूजा होने लगी। उनकी पूजा का दायित्व उनकी बहन का था। जो कि सनातन से उनकी बहन के वंशज औलाद के लोग आज भी पुजारी बनकर ब्रम्हदेव बसामन मामा की पूजा अर्चना करते है। इस स्थान पर बसामन मामा की मूर्ति स्थापित की गई है, जो एक दूल्हे के भेष में हैं। यह स्थान अत्याधिक सिद्ध स्थान है, दूर दूर से लोग पूजा अर्जना करने आते है एवं बसामन मामा सभी की मनोकामना पूर्ण करते है।

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