बसामन मामाः एक वृक्ष के लिए कुर्बानी देने वाला अद्भुत दूल्हा
रीवा से 30 से 40 किलोमीटर की दूरी पर बसामन मामा तीर्थ स्थल की एक अद्भुत कहानी
विंध्य क्षेत्र का ऐतिहासिक व पौराणिक धार्मिक स्थल जिसे आज बसामन मामा के नाम से जाना जाता है। आज भी यहां टमस नदी के सतधारा घाट पर 33 करोड़ देवी देवताओं वाले पीपल के वृक्ष के समीप एक ऐसी समाधि स्थित है जिसका दूसरा कोई उदाहरण विश्व में नहीं मिलता है। मान्यता है कि बसामन मामा धाम में जो घटना घटित हुई वह अपने आप में अद्भुत और रांेगटे खडे की देने वाली है। है। मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सेमरिया विधानसभा के अंतर्गत स्थित ग्राम कुम्हार के ब्रह्मदेव शुक्ला बसामन मामा ने पर्यावरण और वृक्ष की सुरक्षा के लिए अपने वैवाहिक जीवन की प्रथम रात्रि जिसे सुहागरात कहा जाता है उसे भी कुर्बान कर दिया और अपने प्राणों की बलि दे दी। ऐसी रोंगटे खड़े कर देने वाली दूसरी कोई कथा कहीं सुनाई नहीं देती।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार ग्राम कुम्हरा में ब्रह्म देव नामक युवक का जन्म हुआ था। ब्राह्मणों में शुक्ला परिवार में जन्मे ब्रह्म देव बचपन से ही पीपल देव के भक्त थे। वे अपने घर के सामने लगे पीपल देव की नियमित पूजा किया करते थे और उसे ब्रह्म धाम कहते थे।
प्राचीन कथा के अनुसार सेमरिया की गढी में एक राजा रहा करते थे, जिन्होंने हाथियों के समूह को पाल रखा था। हाथियों को पीपल के पत्ते काफी रुचिकर लगते हैं। एक राजा के कुछ नौकर हाथियों को लेकर ग्राम कुम्हरा पहुंचे और वहां ब्रह्मधाम में लगे पीपल के वृक्ष को काटकर उसके पत्ते हाथियों को खिलाना चाह रहे थे लेकिन ब्रह्मदेव के विरोध के आगे यह संभव नहीं हो सका और राजा के नौकर हाथी लेकर वापस पहुंचे और राजा को बताया कि हुकुम आपके राज्य के ग्राम कुम्हरा में एक काफी हरा भरा पीपल का वृक्ष है। जिसे काटने के लिए प्रयास किया गया तो वहां ब्रह्म देव नामक युवक की अलौकिक शक्ति ने उन्हें रोक दिया। राजा के मन में यह दंभ जागा कि उसके राज्य में ऐसी कौन सी शक्ति है, जिसने उनके हाथियों को पीपल के पत्ते नहीं खाने दिए। राजा ने स्वयं निर्णय लिया कि अब वह खुद पहुंचकर उस वृक्ष को अपने सामने खड़े होकर कटवाएंगा।
राजा को खबर लगी कि ब्रह्मदेव बसामन मामा विवाह हो रहा है।
और वह अपनी बारात लेकर गए हुए हैं, तभी राजा ने पीपल के वृक्ष कटवाने को अपनी सेना तैयार कर ली बारात के दूसरे दिन जिस दिन बसी होती है उस दिन राजा ने वासुदेव अर्थात पीपल के वृक्ष को कटवा दिया जैसे ही ब्रह्म देव को विवाह स्थल पर यह सूचना मिली उनके ब्रह्म धाम के वृक्ष को राजा ने जबरन कटवा दिया है तभी ब्रह्म देव ने उसी समय जाने का निर्णय लिया,परंतु सभी घरातियों और बारातियों के आग्रह पर वे रुक गए। और अगले दिन विदाई के तत्त्काल बाद वे तुरंत अपने दूल्हे के भेष में जामा जोड़ा पिअरी पहने और कटार लिए तुरंत ग्राम कुम्हरा के लिए प्रस्थान कर गए। उन्होंने वहां पहुंचकर देखा कि उनकी उनका पीपल का वृक्ष राजा ने कटवा दिया था। अब केवल ठूंठ बचा था। वे वहां से तुरंत राजा की गढी के लिए निकल लिए।
गढी पहुंचने के पहले ही कुछ दूर पर उनकी मुलाकात एक राव जिसे राजघराने में भाट के नाम से जाना जाता था और राजा के खैरख्वाह माने जाते थे। उसकी मुलाकात दूल्हे के वेश में क्रोधित बसामन मामा ब्रह्मदेव से हुई। वह काफी आश्चर्यचकित था उसने उन से निवेदन कर यह जानने का प्रयास किया कि वे कहां जा रहे हैं ब्रह्म देव जी। उन्हें बताया कि राजा ने उनके भगवान वासुदेव की निवास पीपल के वृक्ष को खंडित कर दिया है। उस राव और ब्रह्म देव के बीच काफी देर तक बहस हुई और
राव भाट ने उन्हें रोकने के लिए कुछ कड़े शब्द और शर्मिंदगी भरे बोल बोले,जिससे ब्रह्म देव को गुस्सा आ गया और उनके क्रोध की ज्वाला शांत न होकर और भड़क उठी और इसी बीच उन्होंने अपने पेट में दूल्हे वाली कटार मार ली। राव भाट काफी अचंभित और आश्चर्यचकित था। उसने उनसे माफी मांगी और ब्रह्म देव के कहने इनके शरीर से निकली आंतों को वापस उनके शरीर में एक फेंटे की सहायता से बांध दिया। इसी बीच आत्मग्लानि के चलते राव भाट के मन में भी ब्रह्म हत्या का पाप लगने का विचार आया स इस ब्रह्म हत्या की मुक्ति के लिए उसने वही कटार लेकर अपनी गर्दन पर मार ली l काफी देर तक दोनों वही पड़े रहे परंतु अलौकिक शक्ति ने उन्हें शक्ति प्रदान की और दोनों घायल अवस्था गढी़ के लिए प्रस्थान कर गए। गढी पहुंचते ही ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो कोई तूफान आ गया है। राजा को खबर मिलते ही उसने सारे दरवाजे बंद करा दिए इसी बीच ब्रह्म देव बसामन मामा ने खिड़की से अंदर जाने का प्रयास किया परंतु उनके शरीर की जो आते बंधी थी वह खुल गई और उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। उसी समय उस राव भाट ने भी ब्रह्म देव के चरणों में अपने प्राण त्याग दिए। राजा ने तुरंत दोनों लाशों को जलाने का आदेश दिया और यह स्थान पर ब्रह्म देव की आंत गिरी थी उस पर मिट्टी डलवा दी।
कथा है कि जैसे ही ब्रह्मदेव का पार्थिव शरीर पंचतत्व में विलीन हुआ उसके अगले ही क्षण वे फिर अपने उसी दूल्हे वाले भेष में खड़े हो गए।
उसी समय गढी का एक नौकर नदी में पानी लेने आया हुआ था। उससे ब्रह्म देव ने कहा जाकर अपने राजा को यह खबर दे दो कि जिस पीपल के वृक्ष को तुमने कटवाया है उसका पुजारी ब्राह्मण ब्रह्मदेव तुम्हें उसी स्थान पर बुला रहा है। नौकर की बात सुनकर राजा ने बात मजाक में उड़ा दी और कहा कि मर जाने के बाद कोई किसी को बुलाने नहीं आता है तुम्हें वहम हो गया है। उस घमंडी राजा को उसी क्षण से अज्ञात भय भी सताने लगा जैसे ही वह भोजन करने बैठा तो उसका पूरा भोजन नष्ट हो गया और विश्राम गृह में जैसे ही वह पहुंचा तो उसे अजीब आवाजें सुनाई देने लगीं। आवाज आई कि हे राजा खबरदार हो जा मैं ब्रह्म देव जिसका प्राणधन पीपल का वृक्ष तूने उसकी अनुपस्थिति में कटवाया है तुझे तेरी सेना सहित ललकार रहा है। राजा ने अपनी सेना लेकर उस स्थान पर जाने की तैयारी की कि किंतु इसी बीच में गढी ध्वस्त हो गई और उसमें सभी लोग जिंदा दफन हो गए। कहा जाता है 12 वर्ष का बालक भी था गढी ध्वस्त होने की खबर सुनते ही वह रानी अपने बालक को लेकर जाने लगी ।
जैसे ही रानी के आने की खबर ब्रह्म देव को लगी वे उसे ही नष्ट करने के लिए तैयार हुए दोनों रास्ते में एक-दूसरे के आमने-सामने हुए तो रानी समझ गई कि यह वही ब्रह्मदेव हैं जिन के प्रकोप से हमारा राज पाठ नष्ट हो गया हैं। उसी बीच रानी ने अपने बालक को समझाया कि बेटा तुम्हारे बचने का एक ही उपाय है यदि तुम इन्हें मामा कह कर पुकारो तो शायद है कि तुम्हें प्राणों की माफी मिल जाए। बालक ने ऐसा ही किया और मामा शब्द सुनते ही ब्रह्मदेव बसामन मामा का क्रोध शांत हो गया और उस बालक को आशीर्वाद देकर उसकी मां को कहा कि तुम इस बालक का वंश बढ़ाना चाहती हो और कल्याण चाहती हो तो गंगा में स्नान कर गंगा के उस पार निवास करो। रानी ने ऐसा ही किया और वह बच गई।
इस ऐतिहासिक और लोमहर्षक घटना के बाद ब्रह्मदेव ने अपने ग्राम के निवासियों को स्वप्न में आकर यह बताया कि जिस स्थान पर मेरी आंत गिरी थी उसी स्थान पर पीपल के वृक्ष की सूखी लकड़ी रख दी है और मैंने यह संकल्प लिया है कि यदि मैं मनसा वाचा कर्मणा से भगवान वासुदेव और मां शारदा का भक्त था तो ठीक 12 वर्ष बाद सूखी लकड़ी हरि हो जाएगी और वहां पीपल के वृक्ष में में वासुदेव की पूजा कर सकूंगा। ठीक 12 वर्ष बाद वहां वह सूखी लकड़ी हरी-भरी हो गई और पीपल का वृक्ष तैयार हो गया। आज उसे पुराने ब्रह्म के नाम से जाना जाता है और ब्रह्म देव को बसामन मामा के नाम से प्रसिद्धि मिली है। ऐसी मान्यता है कि यहां जो भी भक्त बसामन मामा के सामने पर्यावरण को सुरक्षित रखने का संकल्प लेता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।