22 March 2024

बेटी को बेटो के बराबर संपति न देकर समानता के अधिकार कानून का उलंघन करते हैं। यह भी अत्याचार की श्रेणी में - Right to equality

सबसे पहले माता पिता ही बेटी को बेटो के बराबर संपति न देकर समानता के अधिकार कानून का उलंघन करते हैं। यह भी अत्याचार की श्रेणी में आता है - Right to equality

यह सच है कि माता-पिता द्वारा बेटी को बेटे के बराबर संपत्ति न देना समानता के अधिकार कानून का उलंघन है। यह लैंगिक भेदभाव का एक रूप है, और यह न केवल बेटी के अधिकारों का हनन करता है, बल्कि समाज में लैंगिक असमानता को भी बढ़ावा देता है।

भारतीय कानून के अनुसार, बेटी को पिता की संपत्ति में बेटे के बराबर अधिकार है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, बेटी को पैतृक संपत्ति में बराबर हिस्सा मिलने का अधिकार है। यह कानून 2005 में संशोधित किया गया था, जिसमें बेटियों को स्व-अर्जित संपत्ति में भी बराबर अधिकार दिया गया था।

इसके बावजूद, कई माता-पिता अपनी बेटियों को बेटे के बराबर संपत्ति नहीं देते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि लैंगिक भेदभाव, सामाजिक रीति-रिवाज, और पुरुष प्रधान सोच।

यह प्रथा न केवल बेटी के अधिकारों का हनन करती है, बल्कि समाज में लैंगिक असमानता को भी बढ़ावा देती है। यह बेटियों को आत्मनिर्भर बनने से रोकता है, और उन्हें आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर बनाता है।

इस समस्या को हल करने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। सरकार द्वारा कई योजनाएं और कानून बनाए गए हैं, जो बेटियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करते हैं।

सामाजिक जागरूकता भी इस समस्या को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। लोगों को लैंगिक भेदभाव के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है।

यह भी महत्वपूर्ण है कि माता-पिता अपनी बेटियों को शिक्षा और आर्थिक रूप से सशक्त बनाएं। यह उन्हें आत्मनिर्भर बनने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करेगा।

हम सभी को मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढना होगा, और यह सुनिश्चित करना होगा कि बेटियों को भी बेटे के बराबर अधिकार और अवसर मिलें।

यहां कुछ उपाय दिए गए हैं जो इस समस्या को हल करने में मदद कर सकते हैं:

  • माता-पिता को अपनी बेटियों को बेटे के बराबर शिक्षा और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।
  • लोगों को लैंगिक भेदभाव के दुष्प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
  • सरकार द्वारा लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए और अधिक योजनाएं और कानून बनाए जाने चाहिए।
  • बेटियों को अपने अधिकारों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए और उन्हें उन अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

एक साथ मिलकर, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि बेटियों को भी बेटे के बराबर अधिकार और अवसर मिलें।

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