आपको ध्यान नही होगा कि
1954 में जब dry milk powder (सूखा दूध) जब मार्केट में दिया तो कोई नही खरीद रहा था।
ये कम्पनियां बर्बाद होने को थी।
तब इन्होंने BAD MARKETING का एक घटिया तरीका निकाला।
उन्होंने रोज़ाना मार्केट से सारा दूध चुपचाप से खरीद के नालियों में फिकवाना शुरू कर दिया।
लोगों के पास सूखा दूध खरीदने के अलावा कोई और विकल्प नही बचा।
लगभग तीन महीने ये गंदा खेल चलता रहा।
इनका product market में dimand पे आ गया।
सूखे दूध के दाम भी बढ़ाए और सारा खर्चा निकाल लिया।
1954
के बाद अब
नींबू महंगा होने के पीछे कहीं शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों की यही ट्रिक तो नही. क्यूँकि अबकि बार लोगों में कोल्ड ड्रिंक्स के ख़िलाफ़ जागरूकता जाग चुकी है
मंथन कीजिएगा।
कहां जा रहे है नींबू?
शिकंजी की जगह आम पन्ना पिएं और पिलाएं।
परंतु ज़हर को ना पनपने दे।